आज के इस आर्टिकल में छत्तीसगढ़ में पुनः भोसला शासन 1830 से 1854 टॉपिक को आगे बढ़ाते हुए रघु जी तृतीय द्वारा किए गए सुधार कार्य, जिलेदारी व्यवस्था, ताहुतदारी व्यवस्था और उनके काल में हुए विद्रोह के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे ।
सन 1828 में भारत का गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक को नियुक्त किया गया इनके द्वारा भारतीय रियासतों के प्रति उदारवादी नीति अपनाई के 1829 में अंग्रेजों और भोसला शासक रघु जी तृतीय के मध्य संधि हुई इसके पश्चात मराठा शासकों को उनका राज्य वापस मिल गया |
रघुजी द्वितीय ने छत्तीसगढ़ का शासन जिलेदारो को नियुक्त करके उनके माध्यम से संचालित किया |
छत्तीसगढ़ में पुनः भोसला शासन 1830 से 1854
सुधार कार्य
सती प्रथा पर प्रतिबंध 1831
नरबलि प्रथा पर रोक
नरबलि प्रथा बस्तर व खरौद जमींदारियों में प्रचलित थी
ठगों का दमन
जिलेदार व्यवस्था
मुख्यालय – रायपुर
नियुक्तिकर्ता – रघु जी तृतीय
अवधि – 1830 से 1854
प्रशासक – जिल्हेदार
क्रम
कुल 8 जिलेदार नियुक्त हुए
- कृष्णा राव अप्पा
- अमृतराव अप्पा
- सदरूद्दीन
- दुर्गा प्रसाद
- इंदुकराव
- सखाराम बापू
- गोविंदा राव अप्पा
- गोपाल राव अप्पा
अंत – चाल्स सी इलियट ने इनसे 1854 में प्रशासन अपने हाथों में ले लिया
ताहुतदारी
रघु जी तृतीय के शासनकाल में दो क्षेत्रों पर ताहुतदारी व्यवस्था लागू हुई
सिरपुर और लवन
विद्रोह
रघु जी तृतीय के शासनकाल में छत्तीसगढ़ में निम्न विद्रोह हुए
धमधा के गोड़ जमीदार का विद्रोह
मेरिया के जमींदार का विद्रोह
बरगढ़ का विद्रोह
तारापुर
नोट
रघु जी तृतीय की मृत्यु 11 दिसंबर 1853 को 47 वर्ष की आयु में हो गई
सन 1854 में लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति के तहत नागपुर राज्य का ब्रिटिश राज्य में विलय कर लिया गया तत्पश्चात छत्तीसगढ़ अंतिम रूप से ब्रिटिश शासन के अंतर्गत शामिल हो गया |
इसे भी पढ़े – छत्तीसगढ़ में सूबा शासन
हमने आज के आर्टिकल में छत्तीसगढ़ में पुनः भोसला शासन 1830 से 1854 के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की और साथ ही रघु जी तृतीय द्वारा किए गए सुधार कार्य, जिलेदारी व्यवस्था, ताहुतदारी व्यवस्था और उनके काल में हुए विद्रोह के बारे बहुत ही अच्छे ढंग से समझा | आपको यह जानकारी कैसी लगी नीचे कमेंट करके जरूर बताएं |